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जब AC नहीं था, तब कैसे होती थी ट्रेन में कूलिंग? तकनीक देखकर आप कहेंगे- जुगाड़ू थे अंग्रेजों भी

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हाइलाइट्स

ये अंग्रेजों के जमाने की ट्रेन है.
इस ट्रेन का संचालन आज भी किया जाता है.
यह भारत की आजादी की गवाह है.

नई दिल्ली. अक्सर ट्रेन में सफर करते हुए हमारे दिमाग में कई तरह के बातें चलती हैं, कई सवाल भी आते हैं. जैसे कि पहली ट्रेन कब चली थी, ट्रेन की लंबाई कितनी होती है, ट्रेन में AC कोच कब लगे थे, ट्रेन के डिब्बों कलर अलग-अलग क्यो होते हैं… वगैरह. रेलवे के इन्हीं रोचक तथ्यों के बारें हम आए दिन आपके लिए जानकारी उपलब्ध कराते रहते हैं. इसी कड़ी में आज हम आपको बताने जा रहे हैं कि भारत में एसी कोच (AC Coach) वाली ट्रेन कब और कहां से कहां तक चली थी.

आपको बता दें कि भारत की पहली AC ट्रेन अंग्रेजों के जमाने की है और सबसे खास बात है कि इस ट्रेन का संचालन आज भी किया जाता है. लेकिन अब इस ट्रेन का नाम बदलकर गोल्‍डन टेंपल मेल कर दिया गया है. यह ट्रेन उस समय की बेहद लग्‍जीरियस ट्रेन कहलाती थी. कहा जाता है फ्रंटियर मेल समय की बेहद पाबंद थी. चलने के 11 महीने बाद पहले बार यह ट्रेन 15 मिनट लेट हो गई थी, तो इसकी जांच के आदेश दे दिए गए थे. इस ट्रेन में ऐसी कई खासियतें हैं. चलिए जानते हैं इस ट्रेन से जुड़े रोचक तथ्य….

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1 सितंबर 1928 को चली थी देश की पहली एसी ट्रेन
भारत की पहली एसी ट्रेन की शुरुआत 1 सितंबर 1928 को हुई थी. तब इसका नाम था- पंजाब मेल (Punjab Mail). लेकिन 1934 में इस ट्रेन में AC कोच जोड़े गए और इसका नाम फ्रंटियर मेल रख दिया गया. मुंबई सेंट्रल से अमृतसर तक जाने वाली ये ट्रेन देश के बंटवारे से पहले तक पाकिस्तान के लाहौर और अफगानिस्तान से होते हुए मुंबई सेंट्रल तक आती जाती थी. ये ट्रेन उस समय देश की सबसे तेज चलने वाली ट्रेन मानी जाती थी. 1996 में इस ट्रेन को ‘गोल्‍डन टेंपल मेल’ का नाम दिया गया.

आज भी चलती है ये ट्रेन
ये अंग्रेजों के जमाने की ट्रेन है और भारत की आजादी की गवाह है. इस ट्रेन का संचालन आज भी किया जाता है, लेकिन अब इस ट्रेन को गोल्‍डन टेंपल मेल (Golden Temple Mail) के नाम से जाना जाता है. फ्रंटियर मेल को भारतीय रेलवे की सबसे पुरानी लंबी दूरी की ट्रेनों में से एक माना जाता था. उस समय किसी व्‍यक्ति को टेलीग्राम भेजना होता था, तो वह इसे गाड़ी के गार्ड के माध्यम से भेजते थे. फ्रंटियर मेल के 1st AC में सफर करने वाले अधिकतर लोग ब्रिटिश होते थे.

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कोच को ऐसे किया जाता था ठंडा
इस ट्रेन में AC कोच को जब जोड़ा गया था, तब इन्हें ठंडा करने के लिए बोगियों के नीचे बर्फ की सिल्लियां लगाई जाती थीं. इसके बाद पंखों को चलाया जाता था. इससे यात्रियों को ठंडक महसूस होती थी. सफर के दौरान एसी बोगियों को ठंडा रखने के लिए रास्ते में अलग-अलग स्टेशनों पर बॉक्स में से पिघले हुए बर्फ यानी ठंडे पानी को खाली किया जाता था और उनकी जगह बर्फ की सिल्लियां भरी जाती थीं. बर्फ की सिल्लियां किस स्‍टेशन पर बदली जाएंगी ये पहले से निर्धारित था.

Tags: Indian railway, Indian Railways, Railway, Railway Knowledge

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